महिला सशक्तिकरण हमेशा से ही बातचीत का एक अहम मुद्दा रहा है और ऐसे में कई बार इसे लेकर बैठकें और अन्य कार्यक्रम होते रहे है| और ऐसे ही कार्यकर्मों के लिए आज हमने आज एक स्पीच तैयार की है जिसमे हमने महिला सशक्तिकरण के विषय पर काफी विश्त्रित तौर पर बातें की है|
महिला सशक्तिकरण पर भाषण – Women Empowerment Speech in Hindi
माननीय प्रधानाचार्य, सभी अध्यापक और सभी छात्रों को मेरा नमस्कार,
आज हम सभी यहाँ पर महिला सशक्तिकरण के अहम और काफी बड़े विषय पर बात करने के लिए यहाँ पर इकठ्ठा हुए हैं| और ऐसे में इस अवसर पर आज मुझे यह मौका प्रदान किया गया है के इस विषय पर मैं अपनी बात रख सकूँ| हम सभी इस बात से तो परिचित ही है के आज आजादी के इतने सालो बाद भी हमारे देश की महिलाओं की क्या स्थिति है| और ऐसे में इस स्थिति में सुधार लाने के लिए और भारत को असल मायने में आजाद करने के लिए महिला सशक्तिकरण वाकई बेहद आवश्यक है|
अगर सरल शब्दों में महिला सशक्तिकरण का मतलब समझा जाए तो इसका मतलब समाज के महिला वर्ग और पुरुष वर्ग में समन्ता लाना है जिसके बाद स्त्रियों को अपने निर्णय लेने की आजादी मिल सके| और सोच में इसी बदलाव को स्थान देना महिला सशक्तिकरण है|
हमारे भारत की बात करें तो यह एक पुरुष प्रधान देश है और ऐसे में यहाँ पुरुषों की गिनती महिलाओं से काफी अधिक है| इस स्थिति में महिलाओं को अधिकतर इसीलिए घर पर ही काम करने की छूट दी जाती है और कई बार उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर भी किया जाता है| पर महिला सशक्तिकरण के बाद जब महिलाएं भी पुरुषों संग कंधे से कंधा मिलकर चलेंगी तो निश्चित तौर पर देश के विकास में भी दोनों का योगदान होगा| और तब हमारा विकासशील भारत धीरे धीरे विकसित देशों की सूची में शामिल होने के पथ पर आएगा|
पर इसके लिए पुरुष वर्ग को यह बात समझनी होंगी के असल में महिलाओं की कार्य क्षमता कहाँ तक है और मौका मिलने पर वो भी आत्मनिर्भर बन सकती है| आज महिला सशक्तिकरण बेहद आवश्यक इसलिए भी है क्योंकि महिलाओं को काफी लम्बे वक्त से उस स्थान से वंचित रखा गया है जिसकी वो हकदार है और ऐसा करने के लिए इन्हें तमाम रीति रिवाजों और मूणताओं से बंधा भी जाता है|
और इस स्थिति में महिलाओं को अपने निर्णय में बदलाव करने पड़ते हैं और कई बार अस्वतन्त्र होकर महिलाओं को अपने जीवन के निर्णय लेने पड़ते है| और इसके लिए जरूरी है के महिलाओं के साथ पुरुष वर्ग भी उन्हें उनका स्थान दिलाने के लिए आगे आये और तब जाकर वाकई में 8 मार्च को असल मायने में हम महिला दिवस मनाने के हकदार बनेंगे|
हर साल एक तरफ जहाँ देश महिला दिवस मनाता है वहीँ एक दिन बाद साल भर महिलाओं को अपने ही घर – देश में दबकर और अपनी स्वतंत्रता को दबाकर रखते हुए जीवन जीना पड़ता है| साल 2017 में जहाँ महिला दिवस पर थीम दिया गया था के ‘Be bold for change’ जिसका मतलब ‘महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिए महिलाओं को साहसिक होकर खुद आगे आना होगा’ है वही बाद में उन्हें बदलाव लाने से रोक दिया जाता है।
महिला वर्ग की एक और सबसे बड़ी समस्या है शादी के वक्त दहेज़ की जो के बेहद प्राचीन समय की प्रथा रही है और आज आजादी के इतने सालों बाद भी हम इससे उभर नही पाए है| आज इतने विकास के बाद भी शादी के वक्त लडके वालों को बिना किसी डॉ के दहेज़ की मांग करते देखा जाता है और कई बार यह छोटी सी लगने वाली प्रथा किस हद तक जाती है यह बात भी छिपी नही है| दहेज़ एक तरह से महिलाओं को ऐसा महसूस कराता है जैसे शादी के नाम पर उनका सौदा हो रहा हो|
वहीँ इसके बाद महिला सशक्तिकरण में बारी आती है देश में महिलाओं की सुरक्षा की जहाँ कई बार हमारा प्रसाशन और देश शर्मसार हुआ है और महिलाएं आज आजादी के इतने सालों बाद भी अपने ही देश में खुद को सहमा हुआ पाती है| कहीं भी आजाद घूमते वक्त उन्हें खुद की सुरक्षा का डर हमेशा रहता है और खासतौर पर शाम या उसके बाद के वक्त महिलाएं अकेली बाहर निकलने से भी कतराती है|
ऐसे में देश के हर पुरुष को यह बात ध्या में रखनी चाहिए के समाज के महिला वर्ग को भी वो आजादी दे जो वो हमेशा से लेते आ रहे हैं और उन्हें भी ऐसा महसूस काये के देश में वो कहीं भी हो वो सुरक्षित है|
इसके बाद महिला सशक्तिकरण में बात आती है कन्या भ्रूण हत्या की जिसमें जन्म से पहले ही लडकियों से उनका जीवन छीन लिया जाता है| हालाँकि अब देश में बदलती मानसिकता और शिक्षा नें इस समस्या को काफी कम कर दिया है पर देश के कई हिस्सों में आज भी यह समस्या व्याप्त है| और साथ ही प्रसाशन का भी इस मामले में काफी अहम योगदान रहा है|
आज हमारे समाज में महिला सशक्तिकरण के कई कदम भी इथाये गये है और खासतौर पर देश के कुछ शिक्षित क्षेत्रों में इनका काफी अच्छा असर भी देखने को मिला है| वहीँ प्रशाशन भी महिलाओं के लिए अब काफी आगे आता नजर आ रहा है और महिला सशक्तिकरण को लेकर बीते कुछ सालों में कई बड़े बदलाव भी देखने को मिले है| पर यह बात हम सभी बखूबी जानते है के जब तक समाज और हम सभी एक जुट होकर इस समय से नही लड़ेंगे तब तक यह हमारे बीच रहने वाली है|
यह महिला सशक्तिकरण के प्रयाशों का ही असर है के देश की महिलाएं अब कई नये क्षेत्रों में परचम लहरा रही है| फिर चाहने वो इंजीनियरिंग हो या मेडिकल , मीडिया हो या प्रशासनिक, राजनैतिक या फिर मनोरंजन लगभग हर क्षेत्र में अब धीरे धीरे महिलाएं पुरुषों के साथ खड़ी हो रही है और समाज में अपना स्थान पाने के लिए भी अग्रसर हो रही है| पर यहाँ जरूरत है सभी के सहयोग की जिससे उन्हें ऐसा करने की हिम्मत मिले और अधिक बेहतर प्रदर्शन करने की प्रेरणा भी|
अंत में हम बस यही कहना चाहेंगे के जिस तरह से भी और जितना भी योगदान हम दे सके हमे महिला सशक्तिकरण के लिए देना चाहिए और महिलाओं को समाज में पुरुष वर्ग के बराबर स्थान दिलाने के भी प्रयास करने चाहिए.