Navagrah – Nine planets
आज की हमारी यह पोस्ट नवग्रहों पर होने वाली है जो के मानव जीवन के साथ साथ प्रकृति पर भी अपना असर दिखाती हैं| बता दें के इन नवग्रहों का मानव जीवन से काफी गहरा सम्बन्ध होता है और जीवन के कई सारे पहलुओं से इनका सीधा सम्बन्ध भी होता है| पौराणिक कथाओं से ऐसी बातें सामने आती है के व्यक्ति के जन्मस्थान और वक्त के आधार पर उसके साथ उसकी ग्रहदशाएं भी जुड़ जाती हैं ये तब तक उसके जीवन और कर्मों को प्रभवित करती है जब तक के उस मनुष्य का शरीर जीवित रहता हैं| और ज्योतिषों द्वारा तो ऐसे दावे भी किये जाते हैं के ये ग्रह हमारे आने वाले वक्त पर भी असर डालते हैं…
नवग्रहों की विस्तृत जानकारी
सूर्य
सूर्य को हम सौर मंडल का मुखिया कह सकते हैं क्योंकि सभी अन्य ग्रह इसी के चारों तरफ अपनी पिंडों में चक्कर लगाते हैं| सूर्य की बात करें तो इनका रथ साथ घोड़े खींचते हैं| सूर्य का पर्यायवाची शब्द ‘रवि’ हैं जिसकी वजह से ते इतवार या ‘रविवार’ के स्वामी हैं| सूर्य को शास्त्रों में भगवान का दृश्य रूप बताया गया है जिसके हम हर रोज़ दर्शन कर सकते हैं| ऐसा बताया जाता है के गायत्री मन्त्र और आदित्य हृदय मन्त्र (आदित्यहृदयम) जैसे मन्त्रों का जाप सूर्यदेव को प्रसन्न करने में अतिप्रभावशाली होता है| बात करें अगर इनसे जुड़े अन्न की तो यह गेहू है|
चंद्र
नवग्रहों में चन्द्र को सुंदर, गौर,जवान और दो भुजाओं वाले (जिनमे एक में एक मुगदर और एक कमल वराजमान रहता है) देव के रूप में वर्णित किया गया है जिनकर रथ को दस मृग या फिर सफेद घोड़े खींचते हैं| रात्री काल में चाँद नजर आता है इसलिए इन्हें निषादिपति का नाम भी मिला हुआ हैं| और क्योंकि इनके रूप को सोम व्याप्त हैं इसलिए इन्होने ‘सोमवार’ का स्वामी माना जाता हैं| चन्द्र के स्वभाव का वर्णन बेहद सरल और शांत स्वभाव में मिलता है और इसी वजह से इन्हें ओस से जुड़ा भी बताया जाता है|
मंगल
सौर मंडल के ग्रहों में मंगल ग्रह ‘लाल ग्रह’ के नाम से जाना जाता है और इसी ग्रह के स्वामी का नाम है मंगल| मंगल को युद्ध का देवता माना जाता है जो के ब्रह्चारी हैं| मंगल ग्रह की बात करें तो इन्हें पृथ्वी की सन्तान माना जाता है और 12 राशियों में से ये दो राशियों के स्वामी हैं जिनमे वृश्चिक राशी और मेष राशि शामिल है| इनका वर्णन एक चतुर्भुज के रूप में किया जाता है जिनके चार हाथों में त्रिशूल, मुगदर, कमल और भाला विराजमान हैं| वहीँ अगर बात करें इनके वाहन की तो ये एक भेड़ पर सवारी करते हैं और ये साप्ताहिक दिनों में ‘मंगलवार’ के स्वामी हैं|
बुध
सौर मंडल के सूर्य से दूरी के आधार पर सबसे पहले आने वाला ग्रह है बुध ग्रह और इसी ग्रह के स्वामी हैं बुध| बुध से जुडी पौराणिक कथाओं के अनुसार ये चंद्र और तारक के पुत्र हैं| बुध की बात करें तो इन्हें व्यापार का देवता माना जाता है और इन्हें शास्त्रों और प्राणी कहानियों में रजो गुण से परिपूर्ण बताया गया है जिसकी वजह से संवाद का प्रतिनिधित्व करते हैं| एक अच्छे वक्ता के रूप में इन्हें हरे रंग में प्रस्तुत किया जाता हैं और इन्हें सप्ताह के दिनों में ‘बुधवार’ का स्वामी बताया जाता हैं|
बृहस्पति
सौर मंडल के ग्रहों में सबसे बड़ा ब्रहस्पति और इस ग्रह के स्वामी भी स्वयं ब्रहस्पति ही हैं| शास्त्रों में बृहस्पति को देवताओं के गुरु अथवा पुरोहित बताया गया है और इनकी विशेषताओं में सत्व गुणों और ज्ञान को शामिल किया गया हैं| इन्हें लेकर ऐसी मान्यताएं हैं के ये शिक्षा का प्रतिनिधित्व करते हैं| अगर बात करें इनके वर्णन की तो सुनहरे वस्त्रों में इन्हें एक छड़ी, एक कमल और अपनी माला धारण किये वर्णित किया जाता हैं| और सप्ताह के दिनों की बात करें तो बृहस्पति को ‘बृहस्पतिवार’ या ‘गुरूवार’ का स्वामी माना जाता हैं|
शुक्र
सौर मंडल में सूर्य से दूरी के aadhar पर दुसरे स्थान पर विराजमान शुक्र ग्रह के स्वामी है शुक्र जिन्हें शास्त्रों में भृगु और उशान का पुत्र बताया जाता है| इन्हें दैत्यों या फिर असुरों के गुरु के रूप में पहचान प्राप्त है| इसके बाद अगर बात करें इनके प्राकृतिक दायित्वों की तो इन्हें धन, खुशी और प्रजनन का प्रतिनिधित्व प्राप्त हैं| शुक्र ग्रह को चित्रों में ऊंट और मगरमच्छ पर सवारी करते हुए वर्णित किया गया है जिनके हाथ में कभी एक छड़ी, माला और एक कमल और कभी धनुष और तीर होती है| ये सप्ताह के दिनों में शुक्रवार के स्वामी हैं|
शनि
सूर्य से दूरी के आधार पर सौर मंडल में छटवें स्थान पर विराजमान शनि ग्रह के स्वामी हैं हैं शनि| शनि को शास्त्रों में भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया का पुत्र बताया गया हैं| बात करें अगर शनि की तो इनका चित्रण काले रंग और काले लिबास में, एक तलवार, तीर और दो खंजर लिए किया जाता हैं| पौराणिक कथाओं की माने तो शनि को न्याय और कठिन मार्गीय शिक्षण का प्रतिनिधित्व सौंपा गया है| इसके अलावा अगर साप्ताहिक दिनों की बात करें तो ‘शनिवार’ के दिन के स्वामी शनि हैं|
राहू
शास्त्रों में ऐसा बताया गया है के सूर्य और चन्द्र को निगलते हुए ये ग्रहण को उत्पन्न करते है| बात करें अगर इनके चित्रित वर्णन की तो चित्रों में इन्हें एक ड्रैगन के रूप में प्रदर्शित किया जाता हैं| राहू काल को पौराणिक कथाओं में अशुभ समय बताया गया है| कथाओं में ऐसा बताया जाता है के समुद्र मंथन के दौरान राहू नें थोडा अमृत पी लिया था पर वह उसके गले से नीचे उतरता इससे पहले ही विष्णु नें स्त्री अवतार (मोहिनी) को लेकर उसका गला अलग कर दिया और वहीँ से यह गले का भाग अम्र हो गया जो आज भी ग्रहण का कारण बनता हैं|
केतु
केतु उसी राक्षसी सांप का बचा हुआ अंश है जिसका धड विष्णु नें मोहिनी रूप लेकर अलग कर दिया था| और ऐसे में यह अंश अमृत को ग्रहण नही कर पाया था और इसी लिए यह अब एक छाया ग्रह बन चूका हैं| हालाँकि मानव जीवन पर इसका भी काफी जबरदस्त असर देखने को मिलता हैं| प्रकृति में तमस और पारलौकिक प्रभावों के प्रतिनिधित्व का कार्यभार केतु का है|