नमस्कार दोस्तों आज हम आप के साथ भगवान महर्षि परशुराम इनके बारे में बताने वाले हैं। महर्षि परशुराम त्रेता युग के महान ऋषि थे। और उनके पिता का नाम जमदग्नि और उनके माता का नाम रेणुका था। वह ब्राह्मण परिवार से थे। पौराणिक ग्रंथो में लिखित अनुसार महर्षि परशुराम यह जिन्होंने सृष्टि को जन्म दिया हैं जिनका नाम विष्णु भगवान वह उनके छठे अवतार थे। कहते हैं की महर्षि परशुराम ब्राम्हण परिवार में जन्म लिया था पर उनकी प्रवर्ति क्षत्रिय थी मतलब उनके अंदर क्षत्रिय गन समाहित थे। वह स्वाभाव से काफी अच्छे थे। कहते हैं की वह सुर्ष्टि के कल्याण के लिए हमेशा आगे रहते थे। महर्षि परशुराम ने कई सारीकड़ी यज्ञ तपासना की हैं। और इसी कड़ी तपश्या के चलते उहे कई सारे वरदान भी प्राप्त हुए हैं। वे भगवान श्री शिवजी के परम भक्त थे। और उन्हें शिवजी ने कई वरदान भी दिए हैं। और कहते हैं की परशुराम जो भी संकल्प करते थे वह पूरा करे बिना नहीं रहते थे।
महर्षि परशुराम इनकी जयंती का पर्व पंडित ब्राह्मण धर्म के लोगो द्वारा मनाया जाता हैं। और उनके जयंती का पर्व हर साल 18 अप्रैल को मनाया जाता हैं। कहा जाता हैं की, परशुराम बचपन से ही कुषाग्रह थे । और कहते हैं की पशु पक्षी योशे काफी लगाव था इसीलिए उनको पक्षी पक्षियों की बोलो बचपन से ही समाज में अति थी। परशुराम इस शब्द का अर्थ कहा जाता हैं की परशु का अर्थ “कुल्हाड़ी” होता हैं और राम इस शब्द का अर्थ “राम होता हैं”
भारत में कई जगह पर परशुराम के मंदिर पाए जाते हैं। इनका जिक्र हिन्दू धर्म के कई बड़े बड़े ग्रंथो में किया हैं जैसे की , रामायण , महाभारत , अदि। कुछ ग्रंथो के नुसार महर्षि परशुराम ने अहंकारी दृष्ट दैत्यों का संग्रार करके 21 बार उनको नस्ट किया था। उन्होंने उनके साथ अपने शिष्यों को लेकर वैदिक संस्कृति का प्रसार किआ हैं। भारतीय पौराणिक ग्रंथो में महर्षि परशुराम के बारे में यह भी लिखा हुआ हैं की उन्होंने तीर चलाके गुजरात से केरला तक समुद्र को पीछे धकेला था। ऐसे कई लेख कई ग्रंथो में उनके बारे में लिखे हुए हैं।