in ,

Biography of Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानंद

भारत की संस्कृति को जग मैं पहचान दिलाने वाले एक महापुरुष स्वामी विवेकानंद उनका जन्म 2 जनवरी 1863 मैं कोलकाता मैं हुआ | स्वामी जी के माता पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और भुवनेष्वरी देवी था | सन्यास से पहले स्वामी जी का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था व आप नरेन के नाम से भी जाने जाते थे। स्वामी जी का परिवार धनी, कुलीन और उदारता व विद्वता के लिए विख्यात था । स्वामी जी के पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता उच्च न्यायालय में वकील थे व कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत करते थे। वे एक विचारक, अति उदार, गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले, धार्मिक व सामाजिक विषयों में व्यवहारिक और रचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति थे । भुवनेश्वरी देवी सरल व अत्यंत धार्मिक महिला थीं । स्वामी जी के घर मैं शांतता और सभ्यता का वास था | स्वामी जी के पिता अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अँग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। स्वामी जी की प्राथमिक पढाई घर पर ही हुई | इसके उपरांत वे विभिन्न स्थानों पर शिक्षा प्राप्त करने गये | कुश्ती, बॉक्सिंग, दौड़, घुड़दौड़, तैराकी, वयायाम उनके शौक थे | उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा था, सुंदर व आकर्षक व्यक्तित्व के होने के कारण लोग उन्हें देखते ही रह जाते थे | स्वामी जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए उत्तीर्ण कर ली और कानून की परीक्षा की तैयारी करने लगे। स्वामी विवेकानंद एक ऐसे संन्यासी का नाम जिनके अनुयायी देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के हर कोने में नजर आते हैं और एक ऐसा संन्यासी जिनका एक वक्तव्य पूरी दुनिया को अपना कायल बनाने के लिए काफी होता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अपने ज्ञान के बल पर दुनिया का दिल जीतने वाले वही स्वामी विवेकानंद को एक बार एक वेश्या के आगे हार गए थे। एक वाक्या यह भी है कि स्वामी विवेकानंद का घर एक वेश्या मोहल्ले में था जिसके कारण विवेकानंद दो मील का चक्कर लगाकर घर पहुंचते थे। स्वामी जी ने ईश्वर के अस्तित्व ढूंढने का बहुत प्रयत्न किया | वे अनेक विद्वानों से मिले और सभी से केवल एक प्रश्न पूछा कि क्या आपने ईश्वर को देखा है तो इनके यह पूछने पर यही जवाब मिला कि नहीं देखा | अंत में उनकी मुलाकात स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुई | नरेंद्र ने उनसे भी यही सवाल किया, तब रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि मैंने ईश्वर को देखा है | इससे ईश्वर के अस्तित्व को लेकर नरेंद्रनाथ के मन से संदेह दूर हो गया | रामकृष्ण परमहंस ने इनके बारे में कहा था कि नरेंद्र नाथ एक दिन संसार को जड़ से हिला देगा | रामकृष्ण जी ने अपनी महासमाधि से 3-4 दिन पूर्व अपनी सारी शक्तियां नरेंद्र को दे दी और कहा- मेरी इस शक्ति से, जो तुममें संचारित कर दी है तुम्हारे द्वारा बड़े-बड़े कार्य होंगे और उसके बाद तुम वहां चले जाओगे जहां से तुम आए हो | स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1 मई 1897 में की थी | जिनका प्रमुख उद्देश्य दूसरों की सेवा और परोपकार करना था |

सन 1893 में शिकागो में संपूर्ण विश्व के धर्माचार्यों का सम्मलेन होना निश्चित हुआ | स्वामी विवेकानंद जी के मन में यह भाव जागृत हुआ कि वह भी सम्मलेन में भाग लें, अपनी इच्छानुसार वह भारत की तरफ से सम्मेलन में सम्मिलित हुए | धर्मसभा का कार्य अपने निश्चित समय से प्रारंभ हुआ | विशाल भवन में हजारों नर-नारी श्रोता उपस्थित थे सभी वक्ता अपना-अपना भाषण लिखकर लाए थे परन्तु स्वामी जी की ऐसी कोई तय्यारी न थी | वहां विवेकानंद जी को कोई नहीं जानता था, जिसके कारण उनको सबसे अन्त में बोलने का अवसर मिला | उस सम्मलेन मैं स्वामी जी की वेशभूषा एकदम सरल और भारत की पहचान बतानेवाली थी , पर उसपर दूसरे धर्म वाले है पड़े थे | सम्मलेन हर कोई खुद के धर्म के बारे बताता था और कहता था हमारा धर्म श्रेस्ट हैं ,परन्तु स्वामी जी के शब्द से सभी अति प्रभावित हुए | स्वामी जी ने सम्मेलन न की किसीके धर्म को श्रेस्ट कहा ना किसी को काम उन्होंने सभी के धर्म को सामान बताया और इस विचारो से संसार को यह मानाने पर विवश क्र दिया की भारत के विश्वगुरु हैं |

Written by Jatin Tripathi

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Sunny Leone’s Bollywood Entry

Benefits of Yoga